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कविता

नरगिस पुष्प की दूसरी मौत

सर्जिओ इन्फेंते

अनुवाद - रति सक्सेना


मैं सागरी झील की सतह के करीब
खड़ा हूँ।

नजर आती है उसमें
किसी बड़े घपलेबाज की
अप्रत्याशित शक्ल।

अचंभित खड़ा रहता हूँ मैं,
निरंतर उतरता वाष्पित जल
प्रतिबिंबित करता रहता है
मेरी शक्ल,
सूखते, घटते जल में
शेष रह जाते है
सूर्य-विगलित
रोड़ी, शैवाल,
एक सड़ी हुई चिंगत मछली
और घपलेबाज सी मेरी शक्ल,
वही सूर्य जो छेद देता है
ओजोन की परत
किसी स्नेही गिलोटिन सा
सफाई से गिरता है
मेरी गुद्दी पर।

 


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